कहानी संग्रह >> जयशंकर प्रसाद की कहानियां जयशंकर प्रसाद की कहानियांजयशंकर प्रसाद
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जयशंकर प्रसाद की सम्पूर्ण कहानियाँ
हीरा टूटी हुई साँस से
कहने लगा- अब भी मार ले।
रामू
ने कहा- अब तू मर ले, तब वह भी मारा जायेगा। तूने हमारा हृदय निकाल लिया
है, तूने हमारा घोर अपमान किया है, उसी का प्रतिफल है। इसे भोग।
हीरा
को चीता खाये डालता है; पर उसने कहा- नीच! तू जानता है कि 'चंदा' अब तेरी
होगी। कभी नहीं! तू नीच है - इस चीते से भी भयंकर जानवर है।
रामू ने पैशाचिक हँसी
हँसकर कहा- चंदा अब तेरी तो नहीं है, अब वह चाहे
जिसकी हो।
हीरा ने टूटी हुई आवाज से
कहा- तुझे इस विश्वासघात का फल शीघ्र मिलेगा और
चंदा फिर हमसे मिलेगी। चंदा...प्यारी...च...
इतना
उसके मुख से निकला ही था कि चीते ने उसका सिर दाँतों के तले दाब लिया।
रामू देखकर पैशाचिक हँसी हँस रहा था। हीरा के समाप्त हो जाने पर रामू लौट
आया, और झूठी बातें बनाकर राजा से कहा कि उसको हमारे जाने के पहले ही चीता
ने मार लिया।
राजा बहुत दुखी हुए, और
जंगल की सरदारी रामू को मिली।
बसंत
की राका चारों ओर अनूठा दृश्य दिखा रही है। चन्द्रमा न मालूम किस लक्ष्य
की ओर दौड़ा चला जा रहा है; कुछ पूछने से भी नहीं बताता। कुटज की कली का
परिमल लिये पवन भी न मालूम कहाँ दौड़ रहा है; उसका भी कुछ समझ नहीं पड़ता।
उसी तरह, चन्द्रप्रभा के तीर पर बैठी हुई कोल-कुमारी का कोमल कण्ठ-स्वर भी
किस धुन में है- नहीं ज्ञात होता।
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