धर्म एवं दर्शन >> क्रोध क्रोधरामकिंकर जी महाराज
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मानसिक विकार - क्रोध पर महाराज जी के प्रवचन
पूछा - महाराज! आप यही न मानते हैं कि भगवान् शंकर का धनुष अद्वितीय है? हाँ है महाराज! अब तो दो ही बाते हैं, आप या तो यह मान लीजिये कि जैसे, खेल-खेल में धनुही टूट जाती है उसी तरह शिव-धनु भी भगवान् राम के हाथों, देखने के लिये छूते ही टूट गया। पर यदि आपको यह लगता है कि शिव-धनु तो अद्वितीय है, तब तो आपको थोड़ी और गंभीरता से विचार करना चाहिये। क्योंकि इस अद्वितीय धनुष को तोड़ने की सामर्थ्य रखनेवाला, धनुष की अपेक्षा भी अधिक महान् होगा। महाराज! ऐसी स्थिति में तो फिर उस महापुरुष के प्रति, आपके मन में आदर और नमन का भाव उत्पन्न होना चाहिये। साथ ही आपको, ऐसे व्यक्ति को अपने दास (शंकरजी के दास के दास) के रूप में पाकर प्रसन्नता ही होनी चाहिये। मानो लक्ष्मणजी का संकेत है कि आप जब इस दृष्टि से विचार करेंगे कि इस धनुष को शंकरजी ने ही कृपा करके अपने दासानुदास के हाथों तुड़वा दिया होगा, तभी न ऐसा अद्वितीय धनुष टूट पाया होगा। तब आपको क्रोध के स्थान पर प्रसन्नता का अनुभव होगा। लक्ष्मणजी परशुरामजी को यह बताना चाहते हैं कि इस धनुष के टूटने के साथ शंकरजी के प्रति विरोध को जोड़कर देखना ठीक नहीं है, इसलिये आपका क्रोध व्यर्थ ही है। 'मानस' के इस प्रसंग में आप देखते हैं कि परशुरामजी को पहले जनकजी पर क्रोध आया, उसके बाद धनुष तोड़नेवाले पर क्रोध आया, फिर लक्ष्मणजी पर क्रोध आ गया। इस प्रकार परशुरामजी का क्रोध तो बढ़ता ही चला जाता है। आगे चलकर एक स्थिति तो यहाँ तक पहुँच गयी कि लक्ष्मणजी बोले भी नहीं, बस! परशुरामजी की बात सुनकर उनको हँसी आ गयी, परशुरामजी ने उन्हें हँसते हुए देख लिया तो-
राम तोर भ्राता बड़ पापी।। 1/276/6
इसी बात से वे सिर से पैर तक क्रोध से भर उठे। ऐसे क्रोध से बचना चाहिये। क्रोध को आग कहा गया है, इसलिये उसे एक कोने में ही रखना चाहिये कि जिससे वह घर में न फैल जाय, अन्यथा वह अनर्थकारी बन जायगा। परशुरामजी को लगा कि यह छोटा राजकुमार मुझसे डर नहीं रहा है। वे भगवान् राम से कहते हैं कि-
नीचु मीचु सम देख न मोही।। 1/276/8
यह नीच मुझे मृत्यु के रूप में न देखकर उल्टा हँसे जा रहा है। अब लक्ष्मणजी से चुप नहीं रहा गया। उन्होंने परशुरामजी का ध्यान समस्या के मूल कारण की ओर आकृष्ट करते हुए कहा - मुनिवर! असली कारण तो आपका क्रोध ही है, अत: आप इसका परित्याग कर दीजिये-
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