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धर्म एवं दर्शन >> प्रेममूर्ति भरत

प्रेममूर्ति भरत

रामकिंकर जी महाराज

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :349
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9822
आईएसबीएन :9781613016169

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भरत जी के प्रेम का तात्विक विवेचन


श्री राम
करि(1), केहरि(2), कपि(3), कोल(4), कुरंगा(5)।
विगत    बैर     विचरहि    सब    संगा।।
(पाँच प्रकार के पशुओं द्वारा स्वागत)

नीलकण्ठ(1), कलकण्ठ(2), शुक(3), चातक(4), चक्क(5), चकोर(6)।
भाँति भाँति बोलहिं बिहग स्रवन सुखद चित चोर ।।
(छः प्रकार के पक्षियों द्वारा स्वागत)

फूलहिं फलहिं बिटप बिधि नाना। मंजु ललित बर बेलि बिताना।।
(वृक्षों ने पुष्पित-फलित होकर स्वागत किया।)

श्री भरत :
खगहा(1), करि(2), हरि(3), बाघ(4), बराहा(5)।
देखि    महिष(6),   वृषु(7)  साज   सराहा।।
(सात प्रकार के पशुओं द्वारा स्वागत)

चक(1), चकोर(2), चातक(3), शुक(4), पिक गन(5)
कूजत     मंजु    मराल(6),    मुदित     मन।
अलिगन(7)    गावत       नाचत      मोरा(8),
जनु    सुराज     मंगल      चहुँ       ओरा।।
(आठ प्रकार के पक्षियों द्वारा स्वागत)

बेलि बिटप तृन सफल सफूला। सब समाज मुद मंगल  मूला।।
(प्रभु के आगमन पर केवल वृक्ष ही फलित हुए, पर यहाँ तो बेलि और तृन सफूला हो गए।)

इस दृष्टि से देखने पर पता चलता है कि मार्ग के स्वागत की पुनरावृत्ति यहाँ भी हुई। “तस मग भयउ न राम कहँ, जस भा भरतहिं जात” का पाठ “विवेक-नरेश” ने भी दुहरा दिया। धन्य हैं श्री भरत।

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