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जीवनी/आत्मकथा >> रवि कहानी

रवि कहानी

अमिताभ चौधुरी

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2015
पृष्ठ :130
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9841
आईएसबीएन :9781613015599

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रवीन्द्रनाथ टैगोर की जीवनी


भारत की राजनीति में इस समय सांप्रदायिकता ने बड़ी तेजी से अपने पैर पसारने शुरू किए। हिन्दू-मुसलमानों के सामाजिक जीवन में उसका प्रभाव पड़ने लगा। महाराष्ट्र में लोकमान्य तिलक की अगुवाई में हिन्दू राष्ट्रीय आंदोलन का जन्म हुआ। शिवाजी उत्सव, गणपति पूजा आदि को मुद्दा बनाकर हिन्दूवादी चेतना को जगाया गया। गोरक्षिणी सभा का भी काम शुरू हुआ। उन्हीं दिनों मुसलमानों में धर्म के नाम पर गो वध करना और हिन्दुओं में धर्म की रक्षा के लिए गाय को बचाना, झगड़े का कारण बन गया। इस कारण गाय को मारने और उसे बचाने के सवाल पर दोनों धर्मों के बीच खून-खराबा होने लगा, जिससे काफी लोगों की जानें गईं। लेकिन रवीन्द्रनाथ ने उम्मीद नहीं छोड़ी थी। उन्होंने कहा था कि इन घटनाओं से खासकर हिन्दुओं के सभी वर्गों के बीच आपस में एकजुटता बढ़ेगी।

पिछली सदी के आखिरी दशक में बंगीय साहित्य परिषद की शुरूआत हुई। उसी साल रवीन्द्रनाथ और कवि नवीनचंद्र सेन सहकारी सभापति बनाए गए। इसी समय उन्होंने देश के लोक साहित्य को इकट्ठा करने और उस पर कुछ खोज कार्य करने के लिए पढ़े - लिखे लोगों से निवेदन किया। उन्होंने इसे लेकर ''साधना'' पत्रिका में कई लेख लिखे। इसी समय वे खुद भी बांग्ला लोकोक्ति तथा लोकगीत संग्रह करने में जुट गए। चैतन्य लाइब्रेरी में ''महिलाओं की लोक कविताएं'' नाम से एक लेख पढ़कर उन्होंने पढ़े-लिखे लोगों का ध्यान इस ओर खींचा। लोक साहित्य की खूबी और उसकी सहजता को उन्होंने लोगों के सामने उजागर किया।

जमींदारी की देखभाल और कलकला आते-जाते रहने के कारण रवीन्द्रनाथ अपनी थकान दूर करने के लिए शांतिनिकेतन के अपने दो मंजिले मकान में रहने चले गए। वहां कुछ दिन आराम करने के बाद वे कलकत्ता लौटे। उसके बाद वे ''साधना'' पत्रिका का काम देखने लगे। उसके अलावा उनका लेखन भी चलता रहा। ''साधना'' में उन्होंने काफी कहानियां और लेख लिखे। ''पंचभूत की डायरी'' भी लिखी। जमींदारी की देखभाल के साथ ही अपना व्यवसाय भी उन्होंने शुरू किया। जूट की खेती, गन्ना पेरने के लिए कोल्हू लगाने, भूसे की खरीद-फरोख्त आदि काम भी वे करने लगे। इसी बीच ''चित्रा'' कविता संग्रह की कई बेहतरीन कविताएं उन्होंने लिखीं। ''उर्वशी'' ''विजयिनी'', ''स्वर्ग हड़ते विदाय'' (स्वर्ग से विदा), ''सिंधुपारे'' (सिंधु पार में), कविताएं इन्हीं दिनों लिखी गईं। इसके अलावा उन्होंने अपनी कहानियों में जिस तरह आम लोगों के बारे में लिखा है, ''चैताली'' नामक कविता संग्रह में भी वैसा ही मिलता है।

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