जीवनी/आत्मकथा >> रवि कहानी रवि कहानीअमिताभ चौधुरी
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रवीन्द्रनाथ टैगोर की जीवनी
उनके मंझले बड़े भैया
हेमेन्द्रनाथ की देखभाल
में बालक रवीन्द्रनाथ को कई तरह की पढ़ाई करनी पड़ी उनके घर पर एक से अधिक
मास्टर पढ़ाने आते थे। रवीन्द्रनाथ को ओरिएंटल सेमिनरी स्कूल में भर्ती
कराया गया। वह स्कूल पसंद न आने पर बाद में वे बंगाल एकेडमी तथा नार्मल
स्कूल में पढ़ने गए। सेंट जेवियर्स स्कूल में भी उन्होंने कुछ दिन पढ़ाई
की, लेकिन किसी भी स्कूल में उनका मन नहीं लगा। इसीलिए घर में पढ़ाने वाले
गुरूओं की देख रेख में धीमी गति से उनकी पढ़ाई चलने लगी। अन्य विषयों की
तुलना में संस्कृत, बांग्ला और अंग्रेजी भाषा में वे बेहतर साबित हुए।
बचपन में ही उन्होंने ''कुमार संभव'' कविता और ''मैकबेथ'' नाटक का बांग्ला
में अनुवाद करने की भी कोशिश की थी। इसके अलावा बड़े भाई द्विजेन्द्रनाथ की
लाइब्रेरी से ''विविधार्थ संग्रह'' और ''अबोध बंधु'' पत्रिकाएं पढ़कर बालक
रवि को लगा कि उन्होंने बड़ी अनोखी चीज पढ़ ली है। उनका ऐसा ही हाल
बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय की पत्रिका ''बंग दर्शन'' पढ़ने के बाद भी हुआ।
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फरवरी 1873 को उनका जनेऊ संस्कार हुआ। इसके बाद वे अपने पिता के साथ
हिमालय घूमने गए। रास्ते में शांतिनिकेतन भी गए। वहीं पर एक ताड़ के पेड़
के नीचे बैठकर उन्होंने ''पृथ्वीराज पराजय'' नामक कविता लिखी। मगर वह
कविता उनसे कहीं खो गई। बोलपुर से रेलगाड़ी में सवार होकर साहबगंज,
दानापुर, इलाहाबाद, कानपुर, आदि जगहों में रुकते हुए पिता और पुत्र दोनों
अमृतसर पहुंचे। वहां पर गुरूबाणी और शबद-कीर्तन सुनने के बाद वे डलहौजी
गए। वहां वक्रोटर शिखर पर दोनों ठहरे, हिमालय दर्शन ने रवीन्द्रनाथ की सोच
को और बढ़ाया। पिता के प्रति उनके मन में आदर भी बढ़ गया।
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