जीवनी/आत्मकथा >> रवि कहानी रवि कहानीअमिताभ चौधुरी
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रवीन्द्रनाथ टैगोर की जीवनी
कुछ
दिनों बाद रवीन्द्रनाथ को पता चला कि गांधी जी हरिजन आंदोलन के प्रचार के
लिए कलकत्ता पहुंच रहे हैं। पुणे समझौता को लेकर बंगाल के ऊंची जाति के
हिन्दू गांधी जी से नाराज थे, इसीलिए उन्होंने तय किया कि वे इस बार गांधी
जी का स्वागत नहीं करेंगे। रवीन्द्रनाथ ने इस बात पर नाराज होकर कहा,
'लेकिन मैं गांधी जी का स्वागत करूंगा।' दूसरी तरफ गांधी जी से उनका मतभेद
भी बढ़ गया। ''बिहार का भूंकम्प छुआछूत के पाप के कारण आया है'', गांधी जी
द्वारा यह बात कहे जाने पर रवीन्द्रनाथ ने जवाब में कहा था-''विज्ञान की
बात को कुसंस्कार से जोड़ना ठीक नहीं।'' जवाहरलाल नेहरू भी कवि की इस बात
से सहमत थे।
रवीन्द्रनाथ एक बार फिर
दक्षिण भारत रवाना हुए। उनके
साथ ''शाप मोचन'' नाटक के कलाकार भी थे। करीब बारह दिन चेन्नई में रहकर वे
वाल्टेयर होते हुए लौटे। इसके बाद ही काशी हिन्दू विश्व विद्यालय के
दीक्षांत समारोह में भाषण देने गए। जिस दिन रवीन्द्रनाथ काशी रवाना होने
वाले थे, उसी दिन यानी 6 फरवरी 1935 को बंगाल के गवर्नर सर जॉन एंडरसन,
जिन्हें क्रांतिकारियों के दमन में महारत हासिल थी, के शांतिनिकेतन में
स्वागत का जर्बदस्त विरोध शुरू हुआ। लाट साहब की सुरक्षा के बहाने पुलिस
ने कालेज के कुछ छात्रों को गिरफ्तार करना चाहा। इससे रवीन्द्रनाथ बेहद
नाराज होकर बोले, ''ठीक है आप लोग इस तरह लाट साहब का स्वागत कीजिए, मैं
यहां से जा रहा हूं।'' आखिरकार गवर्नर के पहुंचने के दिन शांतिनिकेतन में
कोई मौजूद नहीं था। सभी लोग आसपास के गावों में चले गए थे। लाट साहब सूना
आश्रम देखकर लौट गए। उसके कुछ दिन बाद रवीन्द्रनाथ के वाराणसी पहुंचने पर
वहा उनका दीक्षांत भाषण हुआ और उन्हें ''डाक्टरेट'' की उपाधि भी दी गई।
वाराणसी
से इलाहाबाद। वहां से छात्र सम्मेलन के बुलावे पर लाहौर। वहां तो सप्ताह
रहे। उन दिनों पंजाब में हिन्दू-मुसलमानों के आपसी संबंध बेहद खराब चल रहे
थे। रवीन्द्रनाथ ने इस बारे में एक चिट्ठी में लिखा था- ''पजाब में
हिन्दू-मुसलमानों के बीच जो अलगाव की तस्वीर देख आया वह बेहद चिंताजनक तथा
शर्मनाक है।''
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