जीवनी/आत्मकथा >> रवि कहानी रवि कहानीअमिताभ चौधुरी
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रवीन्द्रनाथ टैगोर की जीवनी
रवीन्द्रनाथ बिस्तर पर
लेटे-लेटे कहानी और कविताएं बोलकर लिखाते थे ''गल्प-सल्प'' में उन्होंने
लिखा है-
खत्म
हो रहा है नाटक
पर्दा
गिरने के बाद बुझ रही है
एक-एक
कर बत्तियां
रंगीन
चित्र की रंग-रेखाएं
धुंधली
आंखों से नजर नहीं आएं।
प्रकाश
से ज्यादा भर रहा है धुआं।
उनके
जीवन के अंतिम कुछ महीने बिस्तर पर ही बीते। उस हालत में ही अपने नाती
सौमेन्द्रनाथ ठाकुर के अनुरोध पर उन्होंने मनुष्यों की विजय भावना पर
आधारित एक गीत लिखा। वही उनका अंतिम गीत था-'आ रहा है वह महामानव।' उनके
अंतिम जन्म दिन पर यही गीत गाया गया। जन्म दिन के उसी अवसर पर उनकी पुरानी
कविता को नए गीत मे ढालकर लिखा और गाया गया-''हे नूतन, एक बार फिर दर्शन
दो'' उसी अवसर पर उनका अंतिम भाषण पढ़ा गया-''सभ्यता का संकट।'' उस भाषण मे
उन्होंने एक जगह कहा था-''भाग्य चक्र के फेर मे एक न एक दिन अंग्रेजो को
भारत का राजकाज समेटकर यहां से जाना ही होगा। लेकिन तब किस भारत को वह छोड़
जाएगा। लक्ष्मी विमुख दीन-दरिद्र कूड़े ढेर को?'' उन्होंने यह भी कहा-''आज
मैं उस पार जाने के लिए चल पड़ा हूं।'' पिछले घाट पर मैं क्या छोड़ आया?
सभ्यता के दंभ से भरे इतिहास के मलवे का टूटा-फूटा स्तूप! लेकिन मनुष्य पर
भरोसा न करना पाप होगा। यह भरोसा मुझमें अंतिम दम तक करना पड़ेगा।''
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