जीवनी/आत्मकथा >> रवि कहानी रवि कहानीअमिताभ चौधुरी
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रवीन्द्रनाथ टैगोर की जीवनी
उनके
अंतिम जन्म दिन के कुछ दिनों बाद त्रिपुरा के महाराजा शांतिनिकेतन में
उन्हे ''भारत भास्कर'' की उपाधि देने आए। उनके कवि जीवन की शुरूआत में
उनकी कविताओं की किताब ''भग्न हृदय'' के लिए त्रिपूरा राज दरबार की ओर से
उन्हें सम्मानित किया गया था। जीवन के अतिम दिनों में भी उसी त्रिपुरा के
राज दरबार से उन्हें अंतिम सम्मान मिला।
सम्मान की घोषणा मे कहा
गया था-''रवीन्द्रनाथ की शुरूआती रचनाओं में, भविष्य के बड़े लेखक होने की
संभावना को देखकर त्रिपुरा के वर्तमान राजा के परदादा महाराज वीरचंद
माणिक्य बहादुर ने, युवा रवि को राजकीय सम्मान प्रदान किया था।''
लगभग
उन्हीं दिनों रवीन्द्रनाथ को, एक विदेशी महिला द्वारा भारत के विरूद्ध किए
जा रहे बकवास का, विरोध करना पड़ा। मिस राखबोन नाम की एक अंग्रेज महिला ने
भारत की निंदा करते हुए एक खुली चिट्ठी लिखी थी। उनकी चिट्ठी का कुल सार
यह था कि अंग्रेजो द्वारा दी गई पश्चिमी शिक्षा से ही भारतीयों ने उन्नति
की है मगर वे ही लोग आज लड़ाई में इंग्लैड के सहायता करने के लिए तैयार
नहीं है। वे एहसान फरामोश है।
रवीन्द्रनाथ ने अपनी
बीमारी में ही
उस चिट्ठी के जवाब में लिखा जो देश के लगभग सभी अखबारों में छपा। अपने
जवाब में एक जगह उन्होंने लिखा था, ''दो सौ साल से इस देश का धन-दौलत
लूटने वाली अग्रेज सरकार ने हमारे देश की गरीब आम जनता के लिए क्या किया
है? जरा चारों तरफ नजर उठाकर देखिए, आपको भूखे लोग तड़पते हुए नजर आएंगे।
मैंने थोड़े से पानी के लिए गांव की औरतों को कीचड़ खोदते हुए देखा है,
क्योंकि भारत के गांवों मे स्कूलों से भी ज्यादा कमी कुओं की है। मुझे पता
है कि आज इग्लैड के लोग भी अकाल के दरवाजे पर खड़े हुए है। मुझे उनके लिए
दुःख है लेकिन जब एक तरफ मैं देखता हूं कि खाने के सामान से भरे जहाजों को
ब्रिटिश नौसेना के पहरे में इंग्लैंड पहुंचाया जा रहा है, दूसरी तरफ वे
घटनाएं भी याद आती हैं कि इस देश के एक जिले के लोग जब भूख से मर रहे थे,
मगर दूसरे जिले से अन्न की एक भी गाड़ी भेजकर उन्हें सहायता नहीं पहुंचाई
गई थीं, तब मैं विलायत के अंग्रेज और यहां के अंग्रेजों में फर्क किए बिना
रह नहीं पाता।''
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