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व्यवहारिक मार्गदर्शिका >> संतुलित जीवन के व्यावहारिक सूत्र

संतुलित जीवन के व्यावहारिक सूत्र

श्रीराम शर्मा आचार्य

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2015
पृष्ठ :67
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9843
आईएसबीएन :9781613012789

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मन को संतुलित रखकर प्रसन्नता भरा जीवन जीने के व्यावहारिक सूत्रों को इस पुस्तक में सँजोया गया है


व्यापक अनुसंधान के पश्चात् शोधकर्त्ताओं ने यह निष्कर्ष निकाला कि भड़कीले तथा चमकदार कपड़े मच्छरों तथा हानिकारक रोगजनक कीड़े-मकोड़ों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं। आकर्षित होकर आने वाले ये मच्छर तथा कीट-पतंग उन वस्त्रों को तो हानि पहुँचाते ही हैं, उस व्यक्ति के स्वास्थ्य को भी हानि पहुँचाते हैं। मच्छरों के द्वारा उत्पन्न होने वाले रोगों का आक्रमण उन पर सहज ही हो जाता है। कई कीड़े-मकोड़े जहरीले होते हैं। इनके काटने से शारीरिक व्याधियाँ होती हैं। इस अनुसंधान से इस बात का स्पष्टीकरण भी हुआ कि श्वेत तथा गेरुए वस्त्र इन कीडे-मकोड़ों तथा मच्छरों को आकर्षित नहीं करते। इन रंगों के प्रति वे उदासीन होते हैं। भारतीय संस्कृति में श्वेत तथा पीत वस्त्रों को प्रमुखता दी है तथा शोभाजनक माना है। भारतीय संस्कृति का आधार जो वैज्ञानिक तथ्य रहे हैं, उन्हें आज विस्मृत ही किया जा चुका है, पर उनकी महत्ता को अस्वीकार नहीं किया जा सकता है।

हमारे नवयुवक व नवयुवतियाँ आज जाने कैसे-कैसे चटकीले वस्त्रों से अपने आपको चित्र-विचित्र बनाए दे रहे हैं। जिन वस्त्रों में व्यक्तित्व की झलक नहीं मिलती, जिनके पीछे कोई कारण तथा वैज्ञानिक आधार नहीं, उन्हें यों ही फैशन के नाम पर अपना लेना दिमागी दिवालियापन दिखाने के अतिरिक्त और क्या हो सकता है। फैशन एक अँगरेजी शब्द है, जिसका हिंदी अर्थ 'सभ्य और शालीन वेशभूषा तथा रहन-सहन' होता है, परंतु इस शब्द की जन्मभूमि इंग्लैंड में यह शब्द नाटक या रंगमंच पर काम करने वाले उन कलाकारों के लिए प्रयुक्त किया जाता था, जो नाटक में मसखरे का काम किया करते थे। उनकी वेशभूषा और विचित्र श्रृंगार तथा रूप ग्रहण करने की कला को फैशन समझा जाता था। बाद में इसका प्रयोग केवल श्रृंगार और साजसज्जा के लिए ही किया जाने लगा।

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