उपन्यास >> गंगा और देव गंगा और देवआशीष कुमार
|
7 पाठकों को प्रिय 184 पाठक हैं |
आज…. प्रेम किया है हमने….
आज….
प्रेम किया है हमने….
किसी को….
...अपना भगवान माना है हमने!
तुम ही हो....
बस तुम ही हो....
तेरी आशिकी..... बस तुम ही हो....
तेरी आशिकी..... बस तुम ही हो....
मेरा दर्द भी....
मेरा चैन भी....
मेरी जिन्दगी... बस तुम ही हो....
मेरी जिन्दगी... बस तुम ही हो....
मैंने गाया धीमे स्वर में लय के साथ।
- गंगा और देव
-
- आत्माओं का प्रेम
- सावित्री की सलाह
- शिवालय
- भाग्य और नियति
- क्लास
- गंगा
- मंगल पाण्डे
- मित्ररेखा
- तेज आवाज
- गायत्री
- शादी
- शिवालय
- रानीगंज
- हलवाई
- रानीगंज 2
- शादी
- मामी 1
- देव का प्रणय निवेदन
- थार्नडाइक का सिद्धान्त
- सर्कस
- पिक्चर
- मामी 2
- कसम
- धर्मसंकट
- हाय ददई !
- रुकमणि की फ्रिक
- गायत्री का गुस्सा
- चिट्ठी
- सोलह सोमवार
- दादी
- प्रियवस्तुदान
- गुड़िया
- कजरीतीज
- सवित्री के ताने
- शिवालय (अन्तिम बार)
- पूरी चिट्ठी
- पश्चाताप
- शादी
- शादी की सालगिरह
- एक साल बाद
- फिर एक साल बाद
- इक्कीस साल बाद
- ठीक नौ महीने बाद
- आठ साल बाद
- अयोध्या
- चालीस साल बाद
-
|
लोगों की राय
No reviews for this book